कच्ची दीवारों के ऊपर
और टीन की छत पर
नाच रही है पायल पहने
काली घटा उतरकर।
डूब रहा ‘परसादी’ का घर
बच्चे भूखे प्यासे
रोक रहे ‘पानी बहने’ से
‘बल्लम’ और ‘गड़ासे’
थाने पर ‘दबंग’ के डर से
‘पहरे’ ने लौटाया,
हर कुर्सी ने ठोकर मारी
है नीचे से ऊपर।
बहुत दिनों से आँख गड़ी है
इस घर पर ‘कोठी’ की
सहन नहीं होती है ‘थाली’
‘नमक और रोटी’ की
हाँफ रही है ‘नइकी दुलहिन’
बैठी है गुस्से में,
धार दे रही है ‘हँसिया’ को
रगड़-रगड़ पत्थर पर।
बच्चे अपना खून पसीना
बेचें बाजारों में
उनके हाथ काटकर वर्दी
हँसती अखबारों में
आखिर फँसा दिया ‘बड़कू’ को
चोरी राहजनी में,
जेल तोड़कर लड़के भागे
हैं बंदूकें लेकर।